कितना ढूँढा तुझको
कहाँ कहाँ न तेरी टोह ली
गलियों, चौराहों, बाजारों में
कभी ख्वाबों के गलियारों में
तेरी महक पकड़ता घूमता हूँ मैं
हाँ तुझको ढूंढता हूँ मैं
कोई टीस दिल में है
कोई कसक है कहीं
जाने किस कशिश के चलते
दीदार को तरसता हूँ मैं
हाँ तुझको ढूंढता हूँ मैं
कभी खिलखिलाए, मुस्कुराये,
महकते चेहरों के बीच
ओस सी ठंडी तेरी मीठी हसी को
आँखों से पीता हूँ मैं
हाँ तुझको, तुझको ही ढूंढता हूँ मैं ......
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