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परिचय - शब्द, भाव और मैं
मंगलवार, 16 जुलाई 2013
वक़्त
काश वक़्त किसी जर्जर हवेली की,
वो पुरानी स्थिर सीढ़ी सा होता,
पल भर में भाग कर अपने,
माज़ी के माथे को चूम लेता ।
पर वक़त किसी चमकते मौल के,
ऐस्केलेटर सा है शायद,
जिसपर भागना मना है,
मंज़िल तक ले तो जायेगा,
पर अपनी रफ़्तार से,
बदले वक़्त की यही क़ीमत है शायद ।।
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