किसी की घटती बढ़ती
धडकनों के बीच
एक नन्ही सी
कोंपल बढ़ रही है
कुदरत की क्या
अजब तरकीब है
कि एक ज़िन्दगी में
इक और ज़िन्दगी
करवट ले रही है
कभी घर पे तेरे
कान लगा
तेरी धडकनों को
सुनता हूँ
टोह कर
तेरी हरकतों को
कैसे खेलूँगा तुझसे
ख्वाब यह बुनता हूँ
हंसी को तेरी
किल्कारियों को
सोचकर आंसूं आते हैं
जब साक्षात् तू
गोद में खेलेगी
जाने क्या हाल होगा
ये सोच पल-पल
तेरा इंतज़ार करता हूँ.....
Bahoot Aachhe...!!
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