तुम्हारे ही
सुर्ख लाल होठों पर
वह मुस्कान खिली थी
जिस ने अनजाने में ही शायद
हमारे अटूट रिश्ते की
नीव रख डाली थी
उस दिन
सारी सृष्टि संग तुम्हारे
मुस्कुराई थी
सूने चमन में जैसे
बहार फिर लौट आई थी
आज
आज एक बार फिर
तुम मुस्कुरा दो
मेरे हृदय में
मेरे हृदय में
प्रेम रुपी नव पुष्प
खिला दो
आज एक बार फिर
तुम मुस्कुरा दो ...
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