यह क्या घटा है?
यह कौन सा बादल छाया है?
क्यों भीगी सारी दुनिया है?
क्यों सूखी मेरी काया है?
यह क्या अजब उदासी है?
क्यों रूह इस कदर प्यासी है?
क्यों ऐसा लगता है?
यह मुस्कराहट जो खिली है
वो बस लबों से मिली है
दिल से न कोई नाता है
क्यों हर चेहरा बस
मुखोटा सा नज़र आता है
क्यों लगता है कि शब्द
फूटते तो हैं होंठों से
पर सच से न कोई नाता है
क्यों लोग सुनते तो हैं
समझते नहीं
मुस्कुरा तो लेते हैं
पर हसते नहीं
क्यों लगता है मेरी ज़िन्दगी मेरी नहीं
किसी और के हाथ है
खुशनुमा है तभी तक
जब तक किसी का साथ है
क्यों मन की डोर
किसी और के पास है
यूँ निराशा चहुँ ओर
न ही कोई आस है
क्यों अब शब्दों पर
होता नहीं विश्वास है
क्यों लगता है सब दूर
की जबके सब इतना पास है
क्यों मन का पंछी
आसमान चाहता है
पर अपने ही बनाये पिंजरे में
तरपता रह जाता है
क्यों?
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