आरज़ू तो बहुत है मगर
इक दोस्त हमसफ़र मिल जाए गर
तो जन्नत न बने बेशक मगर
कुछ आसान हो जाये यह सफ़र
कोई हो जो मेरी सुने
कभी कुछ अपनी कहे
डूबने लगूं कभी अगर
तो हाथ थाम मुझको
साहिल पे खींच ले
बिखरने लगूं कभी बेखबर
कस के मुझे बाहों में भींच ले
कोई हो जो काँटों सी राहों को
फूलों से भर दे
आंसूं भरी आँखों को
अपनी पलकों से पोछ दे
आरज़ू तो बहुत है मगर ....
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