रविवार, 7 मार्च 2010

तुम ठहरना प्रिय

सुख के गीत में सुर मिलाने 
सब आयेंगे मगर 
दुःख की रुदाली में कन्धा देने 
तुम ठहरना  प्रिय 

बुलंदी में पलकों पे बिठाने 
सब आयेंगे मगर 
धूल सनी यह देह उठाने 
तुम ठहरना प्रिय

भरा मयखाना गले उतारने 
सब आयेंगे मगर 
कल टूटे प्याले उठाने 
तुम ठहरना प्रिय

महका चमन साँसों में बसाने 
सब आयेंगे मगर 
कल मुरझाये फूल  उठाने 
तुम ठहरना प्रिय

आज रसिल यह काय भोगने 
सब आयेंगे मगर 
कल सूखे ठूंठ को पानी देने 
तुम ठहरना प्रिय  

सफ़र में कदम मिलाने 
सब आयेंगे मगर 
अंतिम पड़ाव  पर मेरे करीब 
तुम ठहरना प्रिय

आज मुझ से सहारा लेने 
सब आयेंगे मगर 
कल कमज़ोर यह जिस्म थामने
तुम ठहरना प्रिय .....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें