बुधवार, 30 जुलाई 2014

सिक्के



जेब में पलछिन्नो के,
कुछ अठन्नी भर सिक्के रखे हैं,
कुछ कच्चे, कुछ पक्के,
कुछ दुक्कियाँ, कुछ इक्के रखे हैं,
यह सिक्के मैं तुझ तक पहुँचाऊँ कैसे,
कमबख़्त फ़ासला बहुत है, 
पल भर में उड़ कर आऊँ कैसे !


गुरुवार, 3 जुलाई 2014

घोंसले का मेहमान





रोज़ सूरज का चेहरा देख,

उम्मीदों की हवाओं पर, 

पंख फैला देता हूँ ,
और सूरज पंख जला कर,
जिस्म ख़ाक कर देता है ।
 
अरे भटके मेघ ज़रा

सूरज को गले लगा
हवा तू मुझे कंधे पे उठा
चल ज़रा ज़ोर लगा !

अपने घोंसले में मेहमान 
बनना अब सहा नहीं जाता
बिना तोतली हँसी के
अब रहा नहीं जाता ।