रविवार, 6 जून 2010

याद

यह पंक्तियाँ समर्पित हैं मेरी प्रेरणा, मेरी अर्धांगिनी को, जिनके साथ बिताया हर सुखी  पल मुझे दुनिया का सबसे खुशकिस्मत व्यक्ति होने का एहसास करता है और हर दुःख का पल जीवन में आगे बढ़ने का हौंसला देता है .. 

क्या बात हुई क्या कही सुनी,
दो आँसूं , इक मुस्कान मिली
आज फिर तन्हा सिरहाने में
क्या बयां करूँ क्या जला बुझा,
बस  याद जली विराने में

जां बस ग़मगीन न हो
यूँ  फ़िक्र न कर
सब बढ़ता है सब कट जाएगा
देख वो बादल छटता है
कोई हौले से मुस्काता है
ख़ुशी कोस दूर बस चौक पे है
क्या बात हुई कुछ देर हुई आने में
इक दिन तन्हा और कटा सिरहाने में .........