शनिवार, 26 मई 2012

नन्ही सी कोंपल


किसी की घटती बढ़ती
धडकनों के बीच
एक  नन्ही सी
कोंपल  बढ़ रही है
कुदरत  की क्या
अजब तरकीब है
कि एक  ज़िन्दगी में
इक  और  ज़िन्दगी
करवट ले रही  है

कभी घर पे तेरे
कान  लगा
तेरी धडकनों को
सुनता हूँ
टोह कर
तेरी हरकतों को
कैसे खेलूँगा तुझसे
ख्वाब यह बुनता हूँ

हंसी को तेरी
किल्कारियों को
सोचकर आंसूं आते हैं
जब साक्षात्  तू
गोद में खेलेगी
जाने क्या हाल  होगा
ये  सोच   पल-पल 
तेरा इंतज़ार करता हूँ.....