सोमवार, 8 मार्च 2010

मैं तुझको बहा आया हूँ



वक़्त के बहते दरया में
मैं तुझको बहा आया हूँ 
यादों का तेरी इक गठरा था
मैं उसको छुपा आया हूँ
भुला पाना मुमकिन न था
आँखों में पल पल तू लहराती थी
नाकाम मोह्हब्बत है मेरी तू
मुझको यह बताती थी
भागना चाहता था बहुत
पर जाता भी तो कहाँ
जिस ओर गया , जिस छोर गया
नज़र हरसूं तू आती है
मगर आज़ाद पंछी हूँ मैं
ना जी सकता था
तेरी यादों के पिंजरे में
इसलिए इस दिल को
तेरे चंगुल से छुड़ा लाया हूँ
वक़्त के दरया में
मैं तुझको बहा आया हूँ

रविवार, 7 मार्च 2010

तुम ठहरना प्रिय

सुख के गीत में सुर मिलाने 
सब आयेंगे मगर 
दुःख की रुदाली में कन्धा देने 
तुम ठहरना  प्रिय 

बुलंदी में पलकों पे बिठाने 
सब आयेंगे मगर 
धूल सनी यह देह उठाने 
तुम ठहरना प्रिय

भरा मयखाना गले उतारने 
सब आयेंगे मगर 
कल टूटे प्याले उठाने 
तुम ठहरना प्रिय

महका चमन साँसों में बसाने 
सब आयेंगे मगर 
कल मुरझाये फूल  उठाने 
तुम ठहरना प्रिय

आज रसिल यह काय भोगने 
सब आयेंगे मगर 
कल सूखे ठूंठ को पानी देने 
तुम ठहरना प्रिय  

सफ़र में कदम मिलाने 
सब आयेंगे मगर 
अंतिम पड़ाव  पर मेरे करीब 
तुम ठहरना प्रिय

आज मुझ से सहारा लेने 
सब आयेंगे मगर 
कल कमज़ोर यह जिस्म थामने
तुम ठहरना प्रिय .....

निशान

वह आये पास हमारे
लिए पैगाम दोस्ती के सारे
हैरान हम भी हुए
देख अंदाज़ यह प्यारे

" मगर रहने दीजिये
हमें माफ़ कीजिये
चोट खा चुके हैं
इस खेल में
अब दिलचस्बी नहीं अपनी
किसी मेल में "
हाथ रखकर मेरे दिल पर
वह प्यार से बोले
" एक ज़ख्म है तुम्हारे दिल पे
मानते हैं
चोट खा चुके हो तुम ये
जानते हैं
पर ज़ख्म तो ज़ख्म हैं
कुछ देर में भर जाते हैं "

" हाँ, सच है,
ज़ख्म तो ज़ख्म हैं
जल्द भर जाते हैं
पर निशान,
यह कमबख्त निशान,
फिर भी रह जाते हैं !!"

शनिवार, 6 मार्च 2010

तुम आओ

तुम आओ कि हम 
आस जगाये बैठे हैं 
तुम आओ कि हम 
पलकें बिछाएं बैठे है 
तुम आओ जल्दी कि 
आस टूटने लगी है 
तुम जल्दी आओ कि 
पलकें भीगने लगी हैं..

इंतज़ार हमने किया है बहुत
कि  तुम  आओ
घुट -घुट  के  हमने  जिया  है  बहुत
कि  तुम  आओ
इंतज़ार कि लौ बुझ
 सी गयी  है 
जल्दी  आओ
सांस  थक  सी  गयी  है
तुम  जल्दी  आओ

तुम  जल्दी  आ  जाओ
कि मैं  राह  ताकता  न  रह  जाऊं
वक़्त  कि  इस  धार  में  ही  न  बह  जाऊं
अतेव  मेरे  प्रिय  तुम  आओ
तुम  जल्दी  आ  जाओ 

गुरुवार, 4 मार्च 2010

ऐसा होता है क्यों?

ऐसा होता है क्यों? 
कि तुम्हारे सामने आते ही 
धड़कन रुक सी जाती है 
सांस थम सी जाती है 
गला सूख जाता है 
ज़ुबान लड़खड़ाने लगती है 
आँखें चमक उठती है 
मैं कहना चाहता तो हूँ, कुछ मगर 
न जाने क्यों 
सब भूल सा जाता हूँ 
क्यों होता है ऐसा?
ऐसा होता है क्यों? 

और ऐसा भी क्यों होता है 
कि तुम्हारे जाते ही 
धड़कन डूब जाती है 
साँसे भोझिल हो जाती हैं 
गला रूंध जाता है 
जुबान कुछ कहना चाहती नहीं 
आँखें छलक उठती हैं 
क्यों होता है ऐसा?
ऐसा होता है क्यों?

ऐसा क्यों होता है 
यह क्या जादू है 
कि तुम्हारे आगाज़ पर,
फिर तुम्हारी परवाज़ पर 
मैं बेकाबू सा 
इक दीवाना सा हो जाता हूँ 
तुम शम्मा बन जाती हो 
मैं परवाना सा हो जाता हूँ 
क्यों होता है ऐसा?
आखिर, ऐसा होता है क्यों?

बुधवार, 3 मार्च 2010

मेरे ख्वाबों में परी बन आती हो तुम

मेरे ख्वाबों में परी बन आती हो तुम
आँखों में बूँद बूँद नशा बन उतर जाती हो तुम 
मैं अवाक् खड़ा देखता भर रह जाता हूँ
जाने कब सामने आ गुज़र भी जाती हो तुम

कोई खुशबु हो हवा में घुली हो तुम
कोई रात हो चांदनी में धूलि हो तुम 
किसी आग की धधकती ज्वाला सी तुम
लहराते कोमल आँचल की शीतल छाया सी तुम

मेरे वजूद पर घटा बन छा जाती हो तुम
इक मुस्कान से अनगिनत मोती लुटाती हो तुम
मेरे ख्वाबों की तामील हो तुम
मेरे वजूद में, मुझ में शामिल हो तुम

जाने कौन हो, कहाँ से आती हो तुम?
क्यों बार बार मुझे यूँ सताती हो तुम?
मगर चाहे जो हो जहाँ हो तुम
मेरी हमराज़, हमकदम, मेरी जान हो तुम

मेरी हमराज़, हमकदम, मेरी जान हो तुम ....

मंगलवार, 2 मार्च 2010

मैं तुझको क्या समझूँ ज़िन्दगी?

मैं तुझको क्या समझूँ ज़िन्दगी?
तुम अक्सर पास आती हो 
एक कविता बनकर 
सप्त सुरों में लिपटी 
अगिनत भावों को समेटे 
जाने कितने अर्थ समाये 
अबुध पहेली बन
उलझा सा छोड़ जाती हो ...

मैं तुझको क्या समझूँ ज़िन्दगी?
तुम अक्सर पास आती हो 
एक महबूबा बन
वक़्त के दिए ज़ख्म सहलाती हो 
प्यार के गीतों में 
ख़ुशी की लाखों सौगातें दे जाती हो 
और जब दर्द कम होने लगता है 
ज़ख्म भरने लगता है 
वही ज़ख्म कुरेदकर 
बेवफा,  तड़पता छोड़ जाती हो...

मैं तुझको क्या समझूँ ज़िन्दगी?