सोमवार, 8 मार्च 2010

मैं तुझको बहा आया हूँ



वक़्त के बहते दरया में
मैं तुझको बहा आया हूँ 
यादों का तेरी इक गठरा था
मैं उसको छुपा आया हूँ
भुला पाना मुमकिन न था
आँखों में पल पल तू लहराती थी
नाकाम मोह्हब्बत है मेरी तू
मुझको यह बताती थी
भागना चाहता था बहुत
पर जाता भी तो कहाँ
जिस ओर गया , जिस छोर गया
नज़र हरसूं तू आती है
मगर आज़ाद पंछी हूँ मैं
ना जी सकता था
तेरी यादों के पिंजरे में
इसलिए इस दिल को
तेरे चंगुल से छुड़ा लाया हूँ
वक़्त के दरया में
मैं तुझको बहा आया हूँ

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