रविवार, 7 मार्च 2010

निशान

वह आये पास हमारे
लिए पैगाम दोस्ती के सारे
हैरान हम भी हुए
देख अंदाज़ यह प्यारे

" मगर रहने दीजिये
हमें माफ़ कीजिये
चोट खा चुके हैं
इस खेल में
अब दिलचस्बी नहीं अपनी
किसी मेल में "
हाथ रखकर मेरे दिल पर
वह प्यार से बोले
" एक ज़ख्म है तुम्हारे दिल पे
मानते हैं
चोट खा चुके हो तुम ये
जानते हैं
पर ज़ख्म तो ज़ख्म हैं
कुछ देर में भर जाते हैं "

" हाँ, सच है,
ज़ख्म तो ज़ख्म हैं
जल्द भर जाते हैं
पर निशान,
यह कमबख्त निशान,
फिर भी रह जाते हैं !!"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें