बुधवार, 1 जून 2011

तुम्हे पाकर यूँ लगा जैसे



तुम्हे पाकर यूँ  लगा जैसे
यह दुनिया छोटी हो गयी है 
दिशाएं कितनी पास आ गयी हैं 
क्षितिज जैसे सिमट के बाहों में आ गया है 
जैसे ज़िन्दगी हर पल, हर लम्हा,
इक नया रंग, नया राग है 
जैसे सारी दुनिया की चहल पहल, 
हमारी बातों में समा गयी है 
जैसे इक अधुरा सा सपना, 
अब पूरा हो चला है 
जैसे मन की बातें, 
अब सिर्फ बातें नहीं रही, 
मीठे जज़्बात हो गयी हैं 
जैसे पन्नो में जोड़ा गया शब्दों के ताना-बाना,
अब केवल कविता नहीं रहा
एक सजीव सृष्टि हो चला है 
जिसे मैं छू सकता हूँ , 
महसूस कर सकता हूँ ,
 कस कर गले लगा सकता हूँ   
जैसे ज़िन्दगी की पूरी किताब,
तेरे होंठों से निकले तीन शब्दों में समा गयी है 
यूँ लगा की जैसे मेरी ख़ुशी, मेरा दर्द, 
अब मेरा नहीं रहा है 
किसी ने सांझा कर लिया है 
सचमुच यह जीवन भी मेरा कहाँ है 
यह तो कब का तेरा हो गया है .......

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