रविवार, 28 फ़रवरी 2010

मुस्कान

तुम्हारे ही 
सुर्ख लाल होठों पर 
वह मुस्कान खिली थी 
जिस ने अनजाने में ही शायद 
हमारे अटूट रिश्ते की 
नीव रख डाली थी 
उस दिन 
सारी सृष्टि संग तुम्हारे 
मुस्कुराई थी 
सूने चमन में जैसे 
बहार फिर लौट आई थी 
आज 
आज एक बार फिर 
तुम मुस्कुरा दो
मेरे हृदय में 
प्रेम रुपी नव पुष्प 
खिला दो 
आज एक बार फिर 
तुम मुस्कुरा दो ...

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

चलो

प्यार के धागों में बंधी इस दोस्ती को 
चलो इक नया नाम  दे
वक़्त की आंधी से बिखर चुके इस  रिश्ते को 
इक  नया आयाम  दें 

ज़िन्दगी के कैनवास पर 
 धुंधली सी तस्वीर में 
नए कुछ रंग भरे 
अपने दरमया खिचती दूरियों को 
चलो कुछ  कम  करें 

खुशियाँ ही खुशियाँ हों 
कोई गम न हो 
करो दुआ  आँखें हमारी 
अब कभी नम  न हो 


विरह में सिसकते दो दिलों को 
मिलन का पैगाम  दें 
प्यार के धागों में बंधी इस  दोस्ती को 
चलो इक  नया नाम  दे...

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

हे परमेश्वर!

हे परमेश्वर!

तुम  मेरी श्रधा का मान हो 
सद कर्म  का वरदान हो  
बाल मुख  का अप्रतिम तेज  हो 
माँ की ममता हो 
पिता की क्षमता भी हो


सूर्य  की गर्मी हो 
चंदा की नरमी भी हो 
यह आकाश , यह धरती,
यह ज्वाला तपती 
सब तुम  हो
हर हार पर 
जीतने का विश्वास  तुम  हो 
हर आंसूं के बाद की मुस्कान हो
हर जगह हर समय 
बस  तुम  हो 
तुम  ही तुम  हो...

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

क्यों?

यह क्या घटा है?
यह कौन सा बादल छाया है?
क्यों भीगी सारी दुनिया है?
क्यों सूखी मेरी काया है?
यह क्या अजब उदासी है?
क्यों रूह इस कदर प्यासी है?

क्यों ऐसा लगता है?
यह मुस्कराहट जो खिली है 
वो बस लबों से मिली है
दिल से न कोई नाता है 
क्यों हर चेहरा बस 

मुखोटा सा नज़र आता है
क्यों लगता है कि शब्द

फूटते तो हैं होंठों से 
पर सच से न कोई नाता है 


क्यों लोग सुनते तो हैं 

समझते नहीं 
मुस्कुरा तो लेते हैं 
पर हसते नहीं 




क्यों लगता है मेरी ज़िन्दगी मेरी नहीं 

किसी और के हाथ है 
खुशनुमा है तभी तक 
जब तक किसी का साथ है 
क्यों मन की डोर 
किसी और के पास है 
यूँ निराशा चहुँ ओर 
न ही कोई आस है 
क्यों अब शब्दों पर 
होता नहीं विश्वास है 
क्यों लगता है सब दूर 

की जबके सब इतना पास है

क्यों मन का पंछी 

आसमान चाहता है 
पर अपने ही बनाये पिंजरे में 
तरपता रह जाता है 

क्यों?

बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

सहरा

लोग खा जाते हैं धोखा 
होंठों पे फैली तबसुम से
समझते हैं बाग़ हूँ मैं
पर तड़पता हुआ सा सहरा हूँ मैं 
अपने ही ग़मों से बोझिल 
एक ठहरा हुआ सा दरया हूँ मैं 
लोग उथले रिश्तों को भी 
जी भर कर पीते हैं 
पर गहरे नाते जोड़ के भी मैं 
सदा से प्यासा हूँ मैं...

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

आरज़ू तो बहुत है मगर

आरज़ू तो बहुत है मगर 
इक  दोस्त हमसफ़र  मिल  जाए गर 
तो जन्नत न बने बेशक  मगर 
कुछ  आसान हो जाये यह सफ़र 

कोई हो जो मेरी सुने 
कभी कुछ  अपनी कहे 
डूबने लगूं कभी अगर
तो हाथ थाम  मुझको 
साहिल पे खींच ले 
बिखरने लगूं कभी बेखबर 

कस के मुझे बाहों में भींच ले

कोई हो जो काँटों सी राहों को 

फूलों से भर दे 
आंसूं भरी आँखों को 
अपनी पलकों से पोछ  दे  
आरज़ू तो बहुत है मगर ....

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

तुझको ढूंढता हूँ मैं

कितना ढूँढा तुझको
कहाँ कहाँ न  तेरी टोह ली
गलियों, चौराहों, बाजारों में  
कभी ख्वाबों के गलियारों में
तेरी महक  पकड़ता घूमता हूँ मैं
हाँ तुझको ढूंढता हूँ मैं 


कोई टीस  दिल  में है
कोई कसक  है कहीं
जाने किस  कशिश  के चलते
दीदार को तरसता हूँ मैं
हाँ तुझको ढूंढता हूँ मैं

कभी खिलखिलाए, मुस्कुराये,
महकते चेहरों के बीच
ओस  सी ठंडी तेरी मीठी हसी को
आँखों से पीता हूँ मैं
 हाँ तुझको, तुझको ही ढूंढता हूँ मैं ......

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

मैं क्या हूँ


आज सोचने बैठा हूँ कि मैं क्या हूँ 
सोचूं तो इक ज़र्रा, इक सूखा पत्ता हूँ 
सोचूं तो इक चट्टान इक तूफ़ान हूँ
उमीदों, सपनो, आशाओं का इक दरया हूँ 
इक जोश का झोंका हूँ , हवा हूँ मैं 
इक आंसूं हूँ पलकों पे ठहरा हूँ 
इक याद हूँ सीने में दबा हूँ 
इक फ़रियाद हूँ होंठों पे सजा हूँ मैं 
इक बादल हूँ बिन बात बहकता हूँ  
इक शोला हूँ दिन रात सुलगता हूँ 

फिर देखूं तो बस क्या हूँ मैं 
वो सोच जो तेरे दिल में है 
बस गीली मिटटी हूँ 
मन से, कर्म से अपने 
रौंद सहला सवार मुझको  
जो तेरे दिल में है वो बना दे मुझको .....

एक बात

इन खामोशियों को जो सुन सकता था 
इस दुनिया के शोर ने 
शायद उसे बहरा कर दिया है 
खामोशियां बधिर कानो से टकरा 
रेशा रेशा बिखर रही हैं 
टूट रही हैं .. ख़त्म हो रही हैं ..
इन आँखों के आंसूं कुछ  कहना तो चाहते हैं 
पर बेबस  ठिठक कर रह जाते हैं 
और एक  बात कहीं रास्ते में दम  तोड़कर रह जाती है ...

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

July Seattle





















I sit here in july seattle,
waiting for the rain to stop,
and I think of you my heart,
how I wish I could fly.
And you enjoy the Vegas summer
chasing the dream mirage
others sit in the same room
pretending to be present here
when they are actually wandering
on their own disillusioned paths.........