रविवार, 28 फ़रवरी 2010

मुस्कान

तुम्हारे ही 
सुर्ख लाल होठों पर 
वह मुस्कान खिली थी 
जिस ने अनजाने में ही शायद 
हमारे अटूट रिश्ते की 
नीव रख डाली थी 
उस दिन 
सारी सृष्टि संग तुम्हारे 
मुस्कुराई थी 
सूने चमन में जैसे 
बहार फिर लौट आई थी 
आज 
आज एक बार फिर 
तुम मुस्कुरा दो
मेरे हृदय में 
प्रेम रुपी नव पुष्प 
खिला दो 
आज एक बार फिर 
तुम मुस्कुरा दो ...

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