रविवार, 8 नवंबर 2009

मुसाफिर

रात  के मुसाफिर चलता जा रे
सराबोर हो अंधियारे में
चाहे चहुँ  दिशाएं
चाहे सराबोर हो जाये
दुनिया बहकावों के गलियारों में   
सुनसान  गली के नुक्कड़ पे
देख  उजाला तकता होगा
सुबह का सूरज  देख  ज़रा
अभी गली के मोड़ पे होगा 
बस  कोस  भर की दूरी है
कदम भर का फासला है......

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