रविवार, 21 फ़रवरी 2010

एक बात

इन खामोशियों को जो सुन सकता था 
इस दुनिया के शोर ने 
शायद उसे बहरा कर दिया है 
खामोशियां बधिर कानो से टकरा 
रेशा रेशा बिखर रही हैं 
टूट रही हैं .. ख़त्म हो रही हैं ..
इन आँखों के आंसूं कुछ  कहना तो चाहते हैं 
पर बेबस  ठिठक कर रह जाते हैं 
और एक  बात कहीं रास्ते में दम  तोड़कर रह जाती है ...

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