गुरुवार, 4 मार्च 2010

ऐसा होता है क्यों?

ऐसा होता है क्यों? 
कि तुम्हारे सामने आते ही 
धड़कन रुक सी जाती है 
सांस थम सी जाती है 
गला सूख जाता है 
ज़ुबान लड़खड़ाने लगती है 
आँखें चमक उठती है 
मैं कहना चाहता तो हूँ, कुछ मगर 
न जाने क्यों 
सब भूल सा जाता हूँ 
क्यों होता है ऐसा?
ऐसा होता है क्यों? 

और ऐसा भी क्यों होता है 
कि तुम्हारे जाते ही 
धड़कन डूब जाती है 
साँसे भोझिल हो जाती हैं 
गला रूंध जाता है 
जुबान कुछ कहना चाहती नहीं 
आँखें छलक उठती हैं 
क्यों होता है ऐसा?
ऐसा होता है क्यों?

ऐसा क्यों होता है 
यह क्या जादू है 
कि तुम्हारे आगाज़ पर,
फिर तुम्हारी परवाज़ पर 
मैं बेकाबू सा 
इक दीवाना सा हो जाता हूँ 
तुम शम्मा बन जाती हो 
मैं परवाना सा हो जाता हूँ 
क्यों होता है ऐसा?
आखिर, ऐसा होता है क्यों?

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