घोंसले का मेहमान
रोज़ सूरज का चेहरा देख,
उम्मीदों की हवाओं पर,
पंख फैला देता हूँ ,
और सूरज पंख जला कर,
जिस्म ख़ाक कर देता है ।
अरे भटके मेघ ज़रा
सूरज को गले लगा
हवा तू मुझे कंधे पे उठा
चल ज़रा ज़ोर लगा !
अपने घोंसले में मेहमान
बनना अब सहा नहीं जाता
बिना तोतली हँसी के
अब रहा नहीं जाता ।
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