बारीशों में नंगे सिर,
कभी चल के देखा है,
बूँदें लपक के,
चूमने को आती
हैं,
गाड़ी के शीशे,
नीचे कर के देखो
हवा कुछ और ही,
गीत सुनाती
है
बस बिन कुछ कहे,
यूँही मुस्कुरा के देखो,
अंजाने खुद-ब-खुद
अपने से
लगते हैं
अपने ही डर की दीवारों
में जो क़ैद हैं हम
इक ईंट गिरा के
देखो
दुनिया कुछ हॅसीन लगती है…