कौन रौंद रहा है तुम्हें ?
और कौन है जो मुझे
पल पल पीस रहा है ?
सोचा वक़्त को इलज़ाम दूँ ,
किस्मत को बुरा भला कहूँ,
रब को भी कोसना चाहा कभी ,
ज़िन्दगी पे लान्नत फेकी ।
पर द्वंद तो कहीं और है ,
शायद तेरे मेरे भीतर कहीं ,
तो गैरों पे क्या उंगली उठायें ?
क्यों न पहले खुद को
खुद ही से बचायें ?