रात के मुसाफिर चलता जा रे
सराबोर हो अंधियारे में
चाहे चहुँ दिशाएं
चाहे सराबोर हो जाये
दुनिया बहकावों के गलियारों में
सुनसान गली के नुक्कड़ पे
देख उजाला तकता होगा
सुबह का सूरज देख ज़रा
अभी गली के मोड़ पे होगा
बस कोस भर की दूरी है
कदम भर का फासला है......
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